आज अमेरिका हमारी तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था में बड़ी हिस्सेदारी चाहता है। भारत की अहमियत को बताना और भारत को उभरते हुए सुपर पावर का महत्व देना भी इस यात्रा का उद्देश्य है। आम लोगों में ओबामा की अच्छी छवि बनी तो ही सौदे उनकी झोली में गिरेंगे। पाकिस्तान के यहां जाकर तो ओबामा को सद्भावना नहीं मिलती। प्रस्तुत है आइजनहॉवर से ओबामा तक के इस समयकालकंड में बहुत कुछ बदला है, प्रस्तुत है भारत और अमेरिका उतार-चढ़ाव भरे सफरनामे पर एक सिंहावलोकन:
9-14 दिसंबर 1959 : ड्वाइट आइजनहॉवर
रामलीला मैदान में दिया भाषण
यहां आने वाले अमेरिका के पहले राष्ट्रपति। उन्होंने तब के राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद व प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू से मुलाकात के अलावा संसद में भाषण दिया, राजकीय भोज में शामिल हुए, दिल्ली यूनिवर्सिटी में डॉक्टरेट की मानद उपाधि ग्रहण की, आगरा जाकर ताजमहल देखा और पास के गांव लारामदा जाकर लोगों से मिले। सुरक्षा बेफिक्री के उन दिनों में आइजनहॉवर ने रामलीला मैदान में भाषण भी दिया। वहां ढाई लाख से ज्यादा लोग मौजूद थे। लोगों ने ‘आइजनहॉवर जिंदाबाद’ के नारे भी लगाए।
31 जुलाई - 1 अगस्त 1969 : रिचर्ड निक्सन
सबसे छोटी यात्रा
दस साल पहले लोगों ने आइजनहॉवर के स्वागत में जो उत्साह दिखाया था वह गायब था। निक्सन व तब की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी एक-दूसरे को पसंद नहीं करते थे। हाल ही में उजागर हुए अमेरिकी दस्तावेजों से भी यही खुलासा हुआ है। तेईस घंटे की इस यात्रा में निक्सन ने कार्यवाहक राष्ट्रपति मोहम्मद हिदायतुल्ला और इंदिरा गांधी से चर्चा की। राष्ट्रपति द्वारा दिए भोज में शामिल हुए और आधा घंटे का सांस्कृतिक कार्यक्रम देखकर अगली सुबह लाहौर रवाना हो गए। यात्रा इतनी छोटी थी कि किसी खास मुद्दे पर बातचीत नहीं हो पाई।
1-3 जनवरी 1978 : जिमी कार्टर
नसीराबाद बना कार्टरपुरी
अपनी खास किस्म की मुस्कान से जिमी कार्टर ने लोगों का मन मोह लिया। वे गुड़गांव के पास नसीराबाद-दौलतपुर गांव गए। उनकी मां लिलीयन गॉर्डी कार्टर 1960 के दशक में अमेरिकी पीस कोर के साथ आई थीं और यहां उन्होंने नर्स के रूप में काम किया था। कार्टर अपनी पत्नी रोजलीन के साथ एक घंटा गांव में रहे। रोजलीन स्थानीय कपड़े पहने थीं। उन्होंने उपहार में गांव को उसका पहला टीवी दिया। उस घर में गए जहां उनकी मां रही थीं। वहां कार्टर दंपती ने रोटी का स्वाद लिया। कार्टर की यात्रा से उत्साहित लोगों ने गांव का नाम कार्टरपुरी कर दिया। कार्टर ने दिल्ली में राष्ट्रपति नीलम संजीव रेड्डी व प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई से मुलाकात की और संसद को संबोधित किया।
19-25 मार्च 2000 : बिल क्लिंटन
नायला में देखा पंचायती राज
बिल क्लिंटन जब बांग्लादेश में ही थे तब ही उनकी बेटी चेल्सी व सास डोरोथी भारत आ गईं। जोधपुर में उन्होंने उम्मेदभवन पैलेस में होली का लुत्फ उठाया। क्लिंटन भारत-अमेरिका रिश्तों में उत्साह भरने में कामयाब रहे। अपनी यात्रा में वे राष्ट्रपति केआर नारायणन और प्रधानमंत्री अटलबिहारी वाजपेयी द्वारा दिए भोज में शरीक हुए, आगरा में ताजमहल देखा। जयपुर के पास नायला गांव में जाकर पंचायती राज का अनुभव लिया। महिलाओं द्वारा चलाए जा रही सहकारी दुग्ध सोसायटी का कामकाज देखा।
1-3 मार्च 2006 : जॉर्ज बुश
वाकई ऐतिहासिक यात्रा
अमेरिकी राष्ट्रपतियों में बुश की यात्रा को वास्तव में ऐतिहासिक कहा जा सकता है। परमाणु करार तथा रक्षा, अंतरिक्ष और ऊंची टेक्नोलॉजी के क्षेत्र में सहयोग के जरिए उन्होंने संकेत दिया कि वे वाकई हमारे साथ रणनीतिक भागीदारी में रुचि रखते हैं। वे हैदराबाद भी गए। फिर दिल्ली लौटकर बुद्धिजीवियों से मुखातिब हुए। पाकिस्तान रवाना होने से पूर्व उन्होंने हमें अमेरिका का स्वाभाविक सहयोगी बताते हुए यहां के जीवंत लोकतंत्र व विविधतापूर्ण समाज की खुले दिल से तारीफ की।
6-9 नवंबर 2010: बराक ओबामा
वक्त ही बताएगा
कुछ दिनों पहले भारत आने की अपनी उत्सुकता बताते हुए बराक ओबामा ने एक यूरोपीय विद्वान के बयान को दोहराया। उन्होंने कहा, आप मानव गतिविधि के किसी भी क्षेत्र का अध्ययन करना चाहे, फिर यह भाषा हो या धर्म, पुराण हो या दर्शन, प्रागैतिहासिक कला हो या विज्ञान आपको भारत जाना ही होगा। क्योंकि मानव इतिहास का बेशकीमती खजाना भारत और सिर्फ भारत में संजोकर रखा हुआ है। फिर उन्होंने कहा, ‘इसलिए जब हम अपने लोगों के लिए समृद्ध भविष्य की बात कर रहे हैं तो मुझे भारत जाना ही होगा, इसमें कोई संदेह नहीं।’
उतार-चढ़ाव भरा सफर
पहले दिए बहुत जख्म
* अपनी अफगानिस्तान-पाक नीति की सफलता को कश्मीर समस्या के जल्द समाधान से जोड़ा।
* दक्षिण एशिया में शांति-स्थिरता के लिए चीन के साथ मिलकर काम करने की बात कही।
* इतना ही नहीं कश्मीर समस्या सुलझाने के लिए चीन को भारत-पाक में मध्यस्थता करने की सलाह तक दे डाली।
फिर लगाया मरहम
* हमारे प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को अपने कार्यकाल के पहले मेहमान के रूप में आमंत्रित किया।
* वाशिंगटन में हमारे विदेशमंत्री एसएम कृष्णा से विदेश मंत्रालय में खुद आकर मिले, भारत की तारीफ की।
* फिर अचानक इतनी जल्दी भारत आने पर सहमत हुए। दौरे में पाकिस्तान को शामिल नहीं किया।
* हमारे प्रधानमंत्री से अंतरराष्ट्रीय मंचों पर छह बार मिले। हर बार मजबूत रिश्तों का भरोसा दिलाया।
* यूरेनियम के फिर इस्तेमाल संबंधी समझौते को अंतिम रूप देकर परमाणु समझौते पर संदेह को दूर किया।
पर चिंताएं तो अब भी बाकी
* पाकिस्तान को बड़ी मात्रा में हथियारों और सैन्य साजोसामान की सप्लाई।
* अफगानिस्तान में तालिबान से समझौते की अमेरिकी नीति।
* चीन द्वारा एनएसजी के नियम तोड़कर पाकिस्तान को दो अतिरिक्त परमाणु संयंत्र देने पर चुप्पी।
* पाकिस्तान जैसे नाकाम, आतंकवादी देश के साथ भारत को रखने की प्रवृत्ति।
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