जीवन में दो बड़े खतरे हैं : ज्ञान का खतरा अहंकार और भक्ति का खतरा आलस्य। आज के विकास के युग में आलस्य अपराध है। घोर परिश्रम के दौर में आलस्य दुगरुण बनकर हमारी परिश्रमी वृत्ति पर प्रहार करता है। भक्त होना एक योग्यता है। भक्ति को केवल क्रिया न मानें, यह जीवन शैली है।
फकीरों ने भक्ति को बीज बताते हुए कहा है, ऐसा बीज कभी भी निष्फल नहीं जाता। युग बीत जाने पर भी इसके परिणाम में फर्क नहीं आएगा। भक्ति बीज पलटे नहीं, जो जुग जाय अनंत। कबीर एक जगह कह गए हैं कि इस सीढ़ी पर लगन और परिश्रम से चढ़ना पड़ता है।
जिन जिन मन आलस किया, जनम जनम पछिताय। साधना के मार्ग में आलस्य कभी-कभी सीधे प्रवेश नहीं करता, वह रूप बनाकर भी आता है। भक्ति के मार्ग पर चलते हुए कई भक्तों को यह भी लगता है कि हम जिस राह पर हैं, वह सही भी है या नहीं?
जीवन में सही-गलत को पहचानना भी बड़ी चुनौती है। आस्तिकता का एक रास्ता है और नास्तिकता के दस। भरोसे की एक किरण हाथ लगती है तो संदेह का बड़ा अंधकार आ घेरता है। इसीलिए लोग नास्तिक हो जाते हैं। महात्माओं, फकीरों ने इस झंझट से बचने का एक सरल तरीका बताया है, वह है भरोसा।
इस निर्णय से हम कहीं पहुंच भी जाएंगे, वरना जीवन भर भटकते रहेंगे। करने वाले हम होते हैं, कराने वाला दूसरा। यहीं से आज के कर्म-युग में शांति प्राप्त हो जाएगी। अत: एक बार भक्ति को भरोसे से जोड़ दें।
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